हमारी एकता के अक्षुण्ण सूत्र: भागवत।

हमारे देश में विद्यमान सभी भाषा, प्रान्त, पंथ, संप्रदाय, जाति, उपजाति इत्यादि विविधताओं को एक सूत्र में बाँधकर एक राष्ट्र के रूप में खड़ा करने वाले तीन तत्व (मातृभूमि की भक्ति, पूर्वज गौरव, व सबकी समान संस्कृति) हमारी एकता का अक्षुण्ण सूत्र हैं।

अपनी ‘स्व’तंत्रता के 75वें वर्ष के निमित्त हमने स्वतन्त्रता संग्राम के महापुरुषों का स्मरण किया। हमारे धर्म, संस्कृति, समाज व देश की रक्षा, समय समय पर उनमें आवश्यक सुधार तथा उनके वैभव का संवर्धन जिन महापुरुषों के कारण हुआ, वे हमारे कर्तृत्व सम्पन्न पूर्वज हम सभी के गौरवनिधान हैं तथा अनुकरणीय हैं।

भारत के बाहर के लोगों की बुद्धि चकित हो जाए, परंतु मन आकर्षित हो जाए ऐसी एकता की परंपरा हमारी विरासत में हमको मिली है। उसका रहस्य क्या है? नि:संशय वह हमारी सर्व समावेशक संस्कृति है। पूजा, परंपरा, भाषा, प्रान्त, जातिपाती इत्यादि भेदों से ऊपर उठकर, अपने कुटुंब से संपूर्ण विश्वकुटुंब तक आत्मीयता को विस्तार देने वाली हमारी आचरण की व जीवन जीने की रीति है।

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